इसी तरह 1980 में एक ऐसे ही प्रस्ताव पर अमरीका ने फिर वीटो का इस्तेमाल किया – इसके बाद ये मामला संयुक्त राष्ट्रसंघ की आमसभा में हर साल उठता रहा और इसके खिलाफ़ सिर्फ़ अमरीका और इज़रायल अपना वोट देते रहे। इतिहास से ये सारी बातें मानो निकाल दी गई हैं – उनकी जगह शांति स्थापना के अमरीकी प्रयासों की प्रेरक कथाओं ने ले ली है। और बताया जा रहा है कि अमन बहाली की ये सारी कोशिशें अरबों के कारण ही सफल नहीं हो पा रहे हैं।
सोमवार, 29 दिसंबर 2008
कब थमेगा मध्य-पूर्व में खूनी खेल ?
इसी तरह 1980 में एक ऐसे ही प्रस्ताव पर अमरीका ने फिर वीटो का इस्तेमाल किया – इसके बाद ये मामला संयुक्त राष्ट्रसंघ की आमसभा में हर साल उठता रहा और इसके खिलाफ़ सिर्फ़ अमरीका और इज़रायल अपना वोट देते रहे। इतिहास से ये सारी बातें मानो निकाल दी गई हैं – उनकी जगह शांति स्थापना के अमरीकी प्रयासों की प्रेरक कथाओं ने ले ली है। और बताया जा रहा है कि अमन बहाली की ये सारी कोशिशें अरबों के कारण ही सफल नहीं हो पा रहे हैं।
रविवार, 21 दिसंबर 2008
जनमाध्यमों से ग़ायब़ हो रहे आम आदमी
भारत में टेलीविज़न पर समाचार अस्सी के दशक में दूरदर्शन ने शुरू किया था। अधेड़ उम्र के समाचार वाचक धड़ाधड़ देश- दुनिया के समाचार पढ़ रहे होते थे। और अंत में मौसम का हाल सुनाकर वो दर्शकों से इज़ाज़त लेते थे। नब्बे के दशक में समाचार पर दूरदर्शन के एकाधिकार को सबसे पहले चुनौती दिया – टीवी टुडे ग्रुप के आजतक ने, और यहीं से शुरू हुआ निज़ी टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों की कहानी। वैसे तो मैं रेडियो का प्रिय श्रोता रहा हूँ – बीबीसी हिंदी सेवा से लेकर वॉयस ऑफ़ अमेरिका, रेडियो डॉयचे वेले और रेडियो चाइना इंटरनेशनल कॉलेज के दिनों में खूब सुना करता था। देश में कोई भी बड़ी घटना होने पर सुबह गाँव के संज़ीदा लोग मुझसे पूछा करते थे – कि ये ख़बर बीबीसी ने कही है। यानि एक तरह से ख़बरों की कसौटी बीबीसी ही तय करता था। आज भी गाँवों और छोटे शहरों में रहने वाले लाखों लोग बीबीसी सुनना पसंद करते हैं। टेलीविज़न में आज तक की विश्वसनीयता भी कुछ इसी तरह की थी। ख़ब़रें वही जो आज तक ने कही – ये वाक्य बीज मंत्र हुआ करता था। देश- दुनिया से लेकर आम आदमी की बातें आजतक में हुआ करती थी। 2000 के दशक में ख़बरों की दुनिया में आजतक ही अकेला नहीं रह गया – कई सारे प्राईवेट न्यूज़ चैनलों ने ख़बरों की दुनिया में दस्तक दी। पहले गिनती के लिहाज़ से उनका नाम याद था – लेकिन अब वे गिनती से बाहर हैं। चौबीसों घंटे वाली ख़बरिया चैनलों की देखते ही देखते बाढ़ आ गई। आज ज़बकि चैनलों की भरमार है – चौबीसों घंटे जनसेवा को ये तैयार हैं। लेकिन जनसरोकार की ख़बरे लगातार ग़ायब हो रही हैं।
आज न्यूज़ चैनलों पर अमिताभ बच्चन का सिद्धिविनायक मंदिर पैदल जाना और उनके पैरों में पड़े छाले ख़बरों की शक्ल अख़्तियार कर लेते हैं। सलमान खान ने जेल में लौकी की सब्जी और चार रोटियाँ खाई – ये इनसाइड स्टोरी बन जाती है। संजय दत्त को हवालात में नींद नहीं आई – इस पर पैनल डिस्कशन किया जाता है। लेकिन उसी दिन बिहार में दलितों के घर आग लगाई जाती है, उड़ीसा में आदिवासी महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया जाता है - ये ख़बर नहीं बन पाती है।
आज के खबरिया चैनल टू –इन –वन नहीं बल्कि मल्टी – इन –वन हो गए हैं। आज न्यूज़ वालों के लिए सिर्फ़ राखी सावंत ही नहीं हैं। इनकी कृपा से एंकात में रहने वाले साधु-सन्यासी भी छोटे पर्दे पर चमक रहे हैं। इतना ही नहीं चंबलों और बीहड़ों में रहने वाले डकैत भी अब बदले कलेवर और नए संस्करण में छोटे पर्दे पर जनसंवाद और परिचर्चा करते नज़र आते हैं। इनकी महिमा ने तो भूत- प्रेतों से लेकर सांप- बिच्छू तक को ग्लोबल बना दिया है। अक्सर गाँव के चौपालों पर चुटकुले सुनाने वालों का भी खूब वारे-न्यारे किए इन चैनलों ने। कभी रामखेलावन, मंगरू और गोपी को हँसाने वाले अब चमचमाते स्टेज़ पर सुंदर- चिकने चेहरों को हँसाने लगे हैं। न्यूज़ चैनलों का योगदान यहीं ख़त्म नहीं होता – घर के झगड़े और सास- बहू के लफ़डों को भी इन्होंने मंच दिया है। लेकिन इस भीड़ में वो लोग और चेहरे कहीं नज़र नहीं आते, उनकी समस्याएँ कहीं नहीं दिखती- जिनकी आवाज़ बुलंद करने का भरोसा दिया था इन्होंने।
आख़िर इसे टीआरपी का तिलिस्म कहें या ख़बरों की दुनिया में बैठे पत्रकारिता के दुश्मन – जो आठ करोड़ की आबादी वाले चार महानगरों की पसंद और नापसंद को देश की सौ करोड़ की आबादी पर ज़बरन थोप रहे हैं। म़ौजूदा टीवी सीरियलों की बात करें तो – उसकी कहानी कुछ और ही बयां करती है। टेलीविज़न पर दिखने वाले ज्यादातर धारावाहिकों में अति उच्च संभ्रांत परिवारों की कहानी होती है। लगभग सभी सीरियल महिला प्रधान हो गई हैं – सबसे ख़ास बात ये है कि ये महिलाएँ लाचार नहीं हैं.... ये चतुर और षड्यंत्र रचती नज़र आती हैं। धनकुबेर महिलाएँ, सिगरेट के धुँए उड़ाती महिलाएँ। यहाँ भी आम महिलाओं की कहानी कहीं नज़र नहीं आती क्या यही हक़ीकत है इस देश की. क्या यही दशा है देशभर में महिलाओं की जो इन सीरियलों में दिखता है। कहने में अतिश्योक्ति नहीं कि मौज़ूदा जनमाध्यम हक़ीकत दिखाने की कोशिश में नहीं, बल्कि हक़ीकत छिपाने की क़वायद में में लगा हुआ है।
कुछ बात महानगरों में अति लोकप्रिय एफ़एम रेडियो की करें – इनकी दुनिया तो अज़ब ही है। देश में कुछ भी हो जाए, ये हमेशा खुश और श्रोताओं को गुदगुदाते रहते हैं। मुझे अच्छी तरह से याद है – जब देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मौत हुई थी। देशभर में सात दिनों का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया। टेलीविज़न और रेडियो पर कोई मनोरंजक कार्यक्रम इस अवधि में नहीं चलाए गए। लेकिन एफ़एम संस्कृति ने तो ग़म और शोक की परिभाषा ही उलट दिया। हाल की घटना है 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला हुआ और उसी दिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह का निधन हुआ था। मैं घर और दफ़्तर के बीच रास्ते में था – मैंने रेडियो पर समाचार सुनने के लिए अपने मोबाइल पर एफएम ट्यून किया। मैं दंग रह गया कि सभी प्राइवेट एफएम स्टेशनों पर श्रोताओं को उनके मनपसंद गाने और बीच-बीच में अंग्रेज़ी-हिंदी मिश्रित हँसी मज़ाक का दौर चल रहा है। उन्हें जैसे पता ही नहीं कि देश में हालात क्या है. इसे क्या कहेंगे आप राष्ट्रीय शोक या राष्ट्रीय उत्सव...। इसे देखकर किसका राज कहेंगे आप सरकार का या कॉरपरेट जगत का। क्यों नहीं सज़ा मिलती इन्हें – क्या देश का कानून मानने और सज़ा भुगतने का हक़ सिर्फ आम आदमी को ही है।
शनिवार, 20 दिसंबर 2008
जियो टीवी का पत्रकारीय ज़िगर
फ़िलहाल ये कह पाना मुश्किल होगा कि कोर्ट इसपर क्या फ़ैसला सुनाती है। पिछले 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमलों के बाद भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों ने पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया। लेकिन पाकिस्तान अपनी हठधर्मिता से कत्तई बाज़ नहीं आया। उसकी तरफ़ से लगातार ये ब़यान दिया गया कि इन हमलों से उनका कोई सरोकार नहीं। ये बात किसी से नहीं छुपी है कि आज की तारीख़ में पाकिस्तान दहशतगर्दों का आरामगाह बना हुआ है। बावजूद इनपर नकेल कसने के वो रक्षात्मक मुद्रा अपना रहा है। अफ़सोस इस बात की है कि इन दहशतगर्दों ने पाकिस्तान को भी नहीं छोड़ा- भस्मासुर की तरह वहां की जम्हूरियत को निगलने के लिए वह आतुर है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए बेनज़ीर भुट्टो की शहादत को.......कौन थे हत्यारे......शायद ये बात ज़नाब जरदारी भी जानते होंगे। ज़रदारी साहब सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्रसंघ में शहीद भुट्टो की तस्व़ीर दिखाने से उनकी रूह को शांति नहीं मिलेगी। अगर कुछ करना ही है तो आरोपों से बचने का नुस्ख़ा छोड़ दहशतगर्दों की गर्दन पकड़िए.......क्योंकि इंतहापसंदी पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन चुका है। मैं जियो टीवी के बेब़ाक पत्रकारिता का क़ायल हो गया हूँ- इसलिए नहीं कि उसने पाकिस्तानी हूक़ूम़त की असलिअत ज़गजाहिर की और भारत के दावों को मज़बूत किया। दरअसल, मैं तो कायल वहाँ के ज्यूडिश्यरी, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और खासकर उनमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाली महिलाओं का भी हूँ, जो समय-समय पर हूकूमत के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की हैं। मुंबई में आतंकियों के खिलाफ़ चल रहे ऑपरेशन को हमारे देश के सभी समाचार चैनलों ने भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच की तरह सीधा प्रसारण दिखाया, वो भी अलग-अलग एंगिलों से। मीडिया के इस भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए जा रहें है कि- उनकी ये बहादुरी किस हद तक ज़ायज थी।
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
जंग तो खुद एक मसला है......?
लेकिन, क्या जंग भारत और पाकिस्तान को दहशतगर्दी से निज़ात दिला पाएगा.....शायद ही इसका जबाब कोई हाँ में दे पाएगा। क्योंकि जंग तो खुद एक मसला है, ये किसी मसले का हल कैसे हो सकता है। दोनों मुल्कों के दरम्यान इससे पहले भी कई जंग हो चुके हैं....नतीज़ा क्या निकला सिवाए खून और तबाही के। हमें ये कत्तई नहीं भूलना चाहिए कि जंग की पृष्ठभूमि हूकूमत बंद कमरे में तैयार होती हैं-लेकिन तबाही का मंजर जंग के मैदान में दिखाई देता है। जंग खत्म तो जरूर होती है, लेकिन उसके घाव मुद्दत तक कायम रहते हैं। हक़ीकत यही है कि सियासतें नफ़रत बोती हैं और जंग काटती हैं।
कम से कम भारत और पाकिस्तान को तो जंग के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए...क्योंकि जंग ने इन दोनों मुल्कों को काफ़ी जख्म दिए हैं, जो अब तक नहीं भरे हैं। हम अमन के तलब़गार हैं, हम नफ़रत की सभी दीवार गिराना चाहते है......। क्योंकि तारीख और सरहदों ने हमें भले ही दो हिस्सों में बाँट दिया हो लेकिन, हमारी रवायत और ख्वाब एक जैसे हैं।
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
इंसानी लाशों पर राजनीति कबतक ?
आतंकी हमलों की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कल अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उनके इस्तीफ़े को रेलमंत्री लालू प्रसाद ने देर में लिया गया फ़ैसला बताया-जबकि बीजेपी ने इसे नौटंकी बताया। इस्तीफ़े का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ.... आज सवेरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और राज्य के गृहमंत्री आर आर पाटिल ने भी अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया। बावजूद इसके सियासत कम नहीं हो रही। कल ही केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को ताज आपरेशन में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने अपने घर में घुसने से मना करते हुए चेतावनी दी कि अगर कोई राजनेता उनके घर घड़ियाली आंसू बहाने आया तो वे खुदकशी कर लेंगे। देश में नेताओं पर से उठते भरोसे के लिए शायद ये संकेत काफी.....................है। हर हमलों के बाद नेताओं की तरफ़ से संवेदना, मुआवज़े और घटना की उच्चस्तरीय जाँच कराने की रस्मअदायगी से देश की जनता का भरोसा उठ चुका है। तभी तो घर कुत्तों को सम्मान तो है, लेकिन देश के नेताओं का नहीं। हमारे देश की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ रही है..............शायद मूल्यविहीनता की तरफ़............................
बुधवार, 23 जुलाई 2008
सोमवार, 14 जुलाई 2008
हमारे अखिलेश भैया
रविवार, 13 जुलाई 2008
नाच
उस मेमने ने कहा , आपके तबले पर मेरी मां का चमड़ा मढ़ा है। जब भी इसमें से ध्वनि बहती है, मुझे लगता है कि मेरी मॉं प्यार और दुलार से मुझे बुला रही है और मै खुशी से नांचने लगता हूं।
निदा फाजली की एक पंक्ति है-
मैं रोया परदेस में , भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
शनिवार, 12 जुलाई 2008
बहन मायावती का सामंती चेहरा
सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय की झंडाबरदार सुश्री मायावती मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश ने कल यानि १२ जुलाई ०८ को
दिल्ली के पंचसितारा होटल ओबरॉय में मीडिया से मुखातिब हुईं !मसला था अपने ऊपर सीबीआई का बढ़ता दबाब ! बहन जी ने लगभग १ घंटे तक चले प्रेस वार्ता में पत्रकारों को यह बताया कि किस कदर केन्द्र के इशारे पर सीबीआई का ग़लत इस्तेमाल उन्हें फसाने और उनकी पार्टी को बदनाम करने कि कोशिश समाजवादी पार्टी और कांग्रेस कर रही है !दरअसल,आय से अधिक सम्पति के मामले में मायावती पर मामला चल रहा है !उनका कहना था कि केन्द्र से समर्थन वापसी के बाद सरकार कि यह बदले कि कारवाई है !बहरहाल,इस बात में सच्चाई जो हो लेकिन ओबरॉय होटल में उनकी प्रेस वार्ता के बारे में आप क्या कहेंगे !
कोंफ्रेंस में तमाम इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट के पत्रकार बंधु मौजूद थे !यह कार्य कर्म टेलीविजन पर लाइव चल रहा था!सभी पत्र कारों के लिए बहन जी ने पंचसितारा होटल में दोपहर के लजीज व्यंजन का प्रवंध कर रखा था !एक बात जो मैंने महसूस किया कि बहन जी कि पार्टी बहुजन समाज कि बात करती है ,लेकिन उनका तामझाम एक सामंती चरित्र वाली पार्टियों जैसा ही था !
क्या बहन जी देल्ही में अपने पार्टी मुख्यालय या उत्तर प्रदेश भवन में संवाददाता सम्मलेन नही कर सकती थी क्या -------
क्या ओबरॉय जैसे महंगे होटल में ही वे अपने को सहज महसूस करती हैं .....................
यह सलाह सिर्फ़ कुमारी मायावती जी को ही नही है ऐसे सभी दलों को है जो पंचसितारा संस्कृति को बधाबा देते हैं
बुधवार, 9 जुलाई 2008
हमारी राजनीती .............
अब हमारी राजनीती की परिभाषा
बदल गई है
हमारी राजनीती जिसमे टिके रहने के लिए
आदर्शो,सिधान्तो की नही -
जरुरत है दो चार लाशों की
क्योंकि,हमारी राजनीती हो गई है नेताओं की लाश निति
अब फिक्र जनतंत्र की नही -
अब भय जनता -जनार्दन की नही-
धन ,बल और अपराध से अर्धमुर्चित हो गई
हमारी राजनीती .........
सोमवार, 7 जुलाई 2008
एक मौका तो दीजए जनाब .पिछले हफ्ते मै और मेरे पत्रकार मित्र पंकज दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् की तरफ़ से आयोजित सूफी संगीत के कार्यकर्म में गए हुए थे .इस कार्यकर्म में पाकिस्तान में मशहूर सूफी कव्वाल साबरी ब्रदर्स ने अपने सूफियाने अंदाज़ में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया .दरअसल मैं और पंकज गजलो और सूफी संगीत के खास कद्रदानों में से हैं .हम दोनों का मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमयान जो करवाहट है ,उसे दूर करने में मौसिकी खासी भूमिका अदा कर सकती है!हमारा मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान को और करीब आना चाहये , क्योंकि दोनों मुल्को के बीच दोस्ती दोनों मुल्को की आवाम चाहती है,किसी शायर ने ठीक ही फ़रमाया "जंग तो ख़ुद एक मसला है,यह किसी मसले का हल कैसे हो सकता है"..................
एक जैसी तहजीब ,एक जैसी रवायत बाबजूद इसके इतनी गहरी दूरियां ।
लेकिन,हम जैसी सोच हमारे हिंदुस्तान मैं बहुत सारे नौजवानों की होगी ,पाकिस्तान में भी नई पीढी की सोच कुछ इसी तरह की होगी .उपरवाले ने दोनों देसों को बेशुमार सलाहयत दी है ,क्या हम उनका इस्तेमाल आवाम की बेहतरी के लिए नही कर सकते!क्या सियासत हमारी जज्बातों पर इतना हावी हो चुका है की हमारे सियासतदान दोनों मुल्कों की जनता को करीब नही आने देना चाहते!
लेकिन,हम करीब आयेगे जरूर आयेंगे ..........................................