रविवार, 13 जुलाई 2008

नाच

एक जाने माने संगीतकार थे। उन्हें अजीब सा शगल था, तन्हाई में जाकर तबला बजाना। एक बार वे देखते हैं कि जैसे ही उन्होंने जंगल में तबला बजाना शुरु किया, तबले की आवाज सुनकर बकरी का एक नन्हा बच्चा दौड़कर आ गया। जैसे जैसे संगीतकार तबला बजाते , वह कूद कूदकर नाचता जाता। फिर तो जैसे यह रोज का क्रम हो गया। संगीतकार का एकांत में तबला बजाना और मेमने का संगीत की लहरियों में खोकर नाचना। एक दिन उस तबला वादक से नहीं रहा गया, उसने मेंमने से पूछा, क्या तुम पिछले जन्म के कोई संगीतकार हो या संगीत के मर्मज्ञ, जो शास्त्रीय संगीत का इतना गहरा ज्ञान रखते हो। तुम्हें मेरी रागों की पेचीदीगियां कैसे समझ में आती हैं
उस मेमने ने कहा , आपके तबले पर  मेरी मां का चमड़ा मढ़ा है। जब भी इसमें से ध्वनि बहती है, मुझे लगता है कि मेरी मॉं प्यार और दुलार से मुझे बुला रही है और मै खुशी से नांचने लगता हूं।
निदा फाजली की एक पंक्ति है-
मैं रोया परदेस में , भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार

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