हमारी राजनीती .............
अब हमारी राजनीती की परिभाषा
बदल गई है
हमारी राजनीती जिसमे टिके रहने के लिए
आदर्शो,सिधान्तो की नही -
जरुरत है दो चार लाशों की
क्योंकि,हमारी राजनीती हो गई है नेताओं की लाश निति
अब फिक्र जनतंत्र की नही -
अब भय जनता -जनार्दन की नही-
धन ,बल और अपराध से अर्धमुर्चित हो गई
हमारी राजनीती .........
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