बुधवार, 9 जुलाई 2008

हमारी राजनीती .............

अब हमारी राजनीती की परिभाषा

बदल गई है

हमारी राजनीती जिसमे टिके रहने के लिए

आदर्शो,सिधान्तो की नही -

जरुरत है दो चार लाशों की

क्योंकि,हमारी राजनीती हो गई है नेताओं की लाश निति

अब फिक्र जनतंत्र की नही -

अब भय जनता -जनार्दन की नही-

धन ,बल और अपराध से अर्धमुर्चित हो गई

हमारी राजनीती .........

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