सोमवार, 7 जुलाई 2008

काफी समय बाद मैं अपने ब्लॉग में कुछ जोर रहा हूँ,पाठक गण इस लंबे अन्तराल के बारे में बहुत कुछ सोच सकते हैं.उन्हें सोचने की पुरी आज़ादी है ,बहरहाल अपनी तरफ़ से मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा की .........................
एक मौका तो दीजए जनाब .पिछले हफ्ते मै और मेरे पत्रकार मित्र पंकज दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् की तरफ़ से आयोजित सूफी संगीत के कार्यकर्म में गए हुए थे .इस कार्यकर्म में पाकिस्तान में मशहूर सूफी कव्वाल साबरी ब्रदर्स ने अपने सूफियाने अंदाज़ में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया .दरअसल मैं और पंकज गजलो और सूफी संगीत के खास कद्रदानों में से हैं .हम दोनों का मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमयान जो करवाहट है ,उसे दूर करने में मौसिकी खासी भूमिका अदा कर सकती है!हमारा मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान को और करीब आना चाहये , क्योंकि दोनों मुल्को के बीच दोस्ती दोनों मुल्को की आवाम चाहती है,किसी शायर ने ठीक ही फ़रमाया "जंग तो ख़ुद एक मसला है,यह किसी मसले का हल कैसे हो सकता है"..................
एक जैसी तहजीब ,एक जैसी रवायत बाबजूद इसके इतनी गहरी दूरियां ।
लेकिन,हम जैसी सोच हमारे हिंदुस्तान मैं बहुत सारे नौजवानों की होगी ,पाकिस्तान में भी नई पीढी की सोच कुछ इसी तरह की होगी .उपरवाले ने दोनों देसों को बेशुमार सलाहयत दी है ,क्या हम उनका इस्तेमाल आवाम की बेहतरी के लिए नही कर सकते!क्या सियासत हमारी जज्बातों पर इतना हावी हो चुका है की हमारे सियासतदान दोनों मुल्कों की जनता को करीब नही आने देना चाहते!
लेकिन,हम करीब आयेगे जरूर आयेंगे ..........................................

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