बुधवार, 23 जुलाई 2008

प्रभाष जोशी को शलाका सम्मान
कल यानि २२

सोमवार, 14 जुलाई 2008

हमारे अखिलेश भैया

कहानी अखिलेश मिश्रा की है। किसी बड़े मल्टिनेशनल में साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। जन्म, शिक्षा सब बिहार में हुई है। दिल्ली में नौकरी करते हैं। दफ्तर से बाहर आते ही दिल-दिमाग पटना के गांधी मैदान का चक्कड़ मारने लगता है। अखिलेश काफी कार्यकुशल थे। समस्या सिर्फ़ एक थी। बॉस को लगता था कि अखिलेश गप्पी नंबर वन है। जब देखा डिंग मारता रहता है। मैं इसे जानता हूं...उसे जानता हूं। बाकौल अखिलेश, अक्षय कुमार से लेकर प्राधानमंत्री तक सब उसे जानते हैं। बेचारे बदनाम हो गए थे। एक दिन बॉस ने अखिलेश को अपने चैंबर में बुलाया। "क्यों अखिलेश, राहुल गाँधी से तुम्हारा परिचय है क्या?" स्योर सर- अखिलेश बोला। "मैं और राहुल तो कॉलेज के दिनों से ही एक दूसरे को जानते हैं।" अच्छा, मिलवा सकते हो??? जी, जब आप चाहें। बॉस को साथ लेकर अखिलेश 10 जनपथ पहुंच जाता है। राहुल गाँधी किसी मीटिंग में व्यस्त थे। अचानक अखिलेश पर उनकी नज़र गई तो उछल पड़े। "अरे अक्खी तुम..! कैसे आए, कुछ विशेष काम है क्या? नहीं यार, बस इधर से गुज़र रहा था, सोचा तुम से मिलता चलूं। आओ साथ में खाना खाते हैं...। बॉस अखिलेश से प्रभावित हुआ। लेकिन उसके दिमाग में अभी भी संशय था। 10 जनपथ से बाहर आने के बाद बॉस ने अखिलेश से कहा...यह महज संयोग था कि राहुल गाँधी तुम्हें जानते हैं। अरे नहीं बॉस मुझे सब जानते हैं। यह कोई संयोग-वंयोग नहीं था। किससे मिलना चाहते हैं- बताईये तो। जार्ज बुश.....जार्ज बुश से मिलवाओ तो मानें। अरे, यह कौन सी बड़ी बात है, अखिलेश ने कहा। चलिए वाशिंगटन चलते हैं। दोनों वाह्ईट हाउस पहुंच जाते हैं। उस वक्त जार्ज बुश अपने काफीले के साथ कहीं निकल रहे थे। अचानक उनकी नज़र अखिलेश मिश्रा पर चली जाती है। बुश का काफिला रुक जाता है। आखिल्स.......! व्हाट अ सरप्राईज़। मैं एक जरूरी मीटिंग के लिए निकल रहा था। तभी तुम और तुंम्हारे दोस्त नज़र आ गए। लेट्स हैव अ कप ऑफ टी आर कॉफी। बॉस चक्कड़ में पड़ जाता है। लेकिन शक का कीड़ा अभी भी उसे सता रहा था। बॉस ने कहा, चलो मान गए। लेकिन ये असंभव है कि तुम्हें सब जानते होंगे। अरे, अब भी कोई शक है आपको....!!!! हाँ, क्या तुम मुझे पोप से मिलवा सकते हो??? कुछ सोचते हुए अखिलेश ने कहा, ठीक है सर। लेकिन उसके लिए रोम चलना होगा। और दोनों रोम के वैटिकन स्कावयर पहुंच जाते हैं। वहाँ श्रद्धालुओं की पहले से ही काफ़ी भीड़ थी। "ऐसे नहीं होगा", अखिलेश ने बॉस से कहा। आप यहीं ठहरिए। पोप के गार्ड मुझे पहचानते हैं। मैं उपर जाता हूं और पोप के साथ बालकोनी में आउंगा। वहाँ आप मुझे पोप के साथ देख लेना। यह कह कर अखिलेश भीड़ में गुम हो गया। ठीक आधे घंटे के बाद अखिलेश मिश्रा पोप के साथ बालकोनी में प्रकट होता है। लेकिन वहाँ से लौटने के बाद यह देखता है कि उसके बॉस का इलाज डाक्टर डाक्टर लगे हैं। बॉस को माईल्ड हार्ट एटैक आया था। बॉस के स्थिति में सुधार होते ही अखिलेश ने उनसे पूछा- क्या हो गया था आपको? जब तुम और पोप बालकोनी में आए तब तक तो सब ठीक ही था। लेकिन तभी मेरे बगल में खड़ा एक व्यक्ति नें कहा - "ये अखिलेश मिश्रा के साथ बालकोनी में कौन खड़ा है"???

रविवार, 13 जुलाई 2008

नाच

एक जाने माने संगीतकार थे। उन्हें अजीब सा शगल था, तन्हाई में जाकर तबला बजाना। एक बार वे देखते हैं कि जैसे ही उन्होंने जंगल में तबला बजाना शुरु किया, तबले की आवाज सुनकर बकरी का एक नन्हा बच्चा दौड़कर आ गया। जैसे जैसे संगीतकार तबला बजाते , वह कूद कूदकर नाचता जाता। फिर तो जैसे यह रोज का क्रम हो गया। संगीतकार का एकांत में तबला बजाना और मेमने का संगीत की लहरियों में खोकर नाचना। एक दिन उस तबला वादक से नहीं रहा गया, उसने मेंमने से पूछा, क्या तुम पिछले जन्म के कोई संगीतकार हो या संगीत के मर्मज्ञ, जो शास्त्रीय संगीत का इतना गहरा ज्ञान रखते हो। तुम्हें मेरी रागों की पेचीदीगियां कैसे समझ में आती हैं
उस मेमने ने कहा , आपके तबले पर  मेरी मां का चमड़ा मढ़ा है। जब भी इसमें से ध्वनि बहती है, मुझे लगता है कि मेरी मॉं प्यार और दुलार से मुझे बुला रही है और मै खुशी से नांचने लगता हूं।
निदा फाजली की एक पंक्ति है-
मैं रोया परदेस में , भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार

शनिवार, 12 जुलाई 2008

बहन मायावती का सामंती चेहरा

सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय की झंडाबरदार सुश्री मायावती मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश ने कल यानि १२ जुलाई ०८ को

दिल्ली के पंचसितारा होटल ओबरॉय में मीडिया से मुखातिब हुईं !मसला था अपने ऊपर सीबीआई का बढ़ता दबाब ! बहन जी ने लगभग १ घंटे तक चले प्रेस वार्ता में पत्रकारों को यह बताया कि किस कदर केन्द्र के इशारे पर सीबीआई का ग़लत इस्तेमाल उन्हें फसाने और उनकी पार्टी को बदनाम करने कि कोशिश समाजवादी पार्टी और कांग्रेस कर रही है !दरअसल,आय से अधिक सम्पति के मामले में मायावती पर मामला चल रहा है !उनका कहना था कि केन्द्र से समर्थन वापसी के बाद सरकार कि यह बदले कि कारवाई है !बहरहाल,इस बात में सच्चाई जो हो लेकिन ओबरॉय होटल में उनकी प्रेस वार्ता के बारे में आप क्या कहेंगे !

कोंफ्रेंस में तमाम इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट के पत्रकार बंधु मौजूद थे !यह कार्य कर्म टेलीविजन पर लाइव चल रहा था!सभी पत्र कारों के लिए बहन जी ने पंचसितारा होटल में दोपहर के लजीज व्यंजन का प्रवंध कर रखा था !एक बात जो मैंने महसूस किया कि बहन जी कि पार्टी बहुजन समाज कि बात करती है ,लेकिन उनका तामझाम एक सामंती चरित्र वाली पार्टियों जैसा ही था !

क्या बहन जी देल्ही में अपने पार्टी मुख्यालय या उत्तर प्रदेश भवन में संवाददाता सम्मलेन नही कर सकती थी क्या -------

क्या ओबरॉय जैसे महंगे होटल में ही वे अपने को सहज महसूस करती हैं .....................

यह सलाह सिर्फ़ कुमारी मायावती जी को ही नही है ऐसे सभी दलों को है जो पंचसितारा संस्कृति को बधाबा देते हैं

बुधवार, 9 जुलाई 2008

हमारी राजनीती .............

अब हमारी राजनीती की परिभाषा

बदल गई है

हमारी राजनीती जिसमे टिके रहने के लिए

आदर्शो,सिधान्तो की नही -

जरुरत है दो चार लाशों की

क्योंकि,हमारी राजनीती हो गई है नेताओं की लाश निति

अब फिक्र जनतंत्र की नही -

अब भय जनता -जनार्दन की नही-

धन ,बल और अपराध से अर्धमुर्चित हो गई

हमारी राजनीती .........

सोमवार, 7 जुलाई 2008

काफी समय बाद मैं अपने ब्लॉग में कुछ जोर रहा हूँ,पाठक गण इस लंबे अन्तराल के बारे में बहुत कुछ सोच सकते हैं.उन्हें सोचने की पुरी आज़ादी है ,बहरहाल अपनी तरफ़ से मैं सिर्फ़ इतना कहूँगा की .........................
एक मौका तो दीजए जनाब .पिछले हफ्ते मै और मेरे पत्रकार मित्र पंकज दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् की तरफ़ से आयोजित सूफी संगीत के कार्यकर्म में गए हुए थे .इस कार्यकर्म में पाकिस्तान में मशहूर सूफी कव्वाल साबरी ब्रदर्स ने अपने सूफियाने अंदाज़ में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया .दरअसल मैं और पंकज गजलो और सूफी संगीत के खास कद्रदानों में से हैं .हम दोनों का मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमयान जो करवाहट है ,उसे दूर करने में मौसिकी खासी भूमिका अदा कर सकती है!हमारा मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान को और करीब आना चाहये , क्योंकि दोनों मुल्को के बीच दोस्ती दोनों मुल्को की आवाम चाहती है,किसी शायर ने ठीक ही फ़रमाया "जंग तो ख़ुद एक मसला है,यह किसी मसले का हल कैसे हो सकता है"..................
एक जैसी तहजीब ,एक जैसी रवायत बाबजूद इसके इतनी गहरी दूरियां ।
लेकिन,हम जैसी सोच हमारे हिंदुस्तान मैं बहुत सारे नौजवानों की होगी ,पाकिस्तान में भी नई पीढी की सोच कुछ इसी तरह की होगी .उपरवाले ने दोनों देसों को बेशुमार सलाहयत दी है ,क्या हम उनका इस्तेमाल आवाम की बेहतरी के लिए नही कर सकते!क्या सियासत हमारी जज्बातों पर इतना हावी हो चुका है की हमारे सियासतदान दोनों मुल्कों की जनता को करीब नही आने देना चाहते!
लेकिन,हम करीब आयेगे जरूर आयेंगे ..........................................