बुधवार, 23 जुलाई 2008
सोमवार, 14 जुलाई 2008
हमारे अखिलेश भैया
रविवार, 13 जुलाई 2008
नाच
उस मेमने ने कहा , आपके तबले पर मेरी मां का चमड़ा मढ़ा है। जब भी इसमें से ध्वनि बहती है, मुझे लगता है कि मेरी मॉं प्यार और दुलार से मुझे बुला रही है और मै खुशी से नांचने लगता हूं।
निदा फाजली की एक पंक्ति है-
मैं रोया परदेस में , भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की, बिन चिठ्ठी बिन तार
शनिवार, 12 जुलाई 2008
बहन मायावती का सामंती चेहरा
सर्वजन हिताय,सर्वजन सुखाय की झंडाबरदार सुश्री मायावती मुख्यमंत्री उत्तरप्रदेश ने कल यानि १२ जुलाई ०८ को
दिल्ली के पंचसितारा होटल ओबरॉय में मीडिया से मुखातिब हुईं !मसला था अपने ऊपर सीबीआई का बढ़ता दबाब ! बहन जी ने लगभग १ घंटे तक चले प्रेस वार्ता में पत्रकारों को यह बताया कि किस कदर केन्द्र के इशारे पर सीबीआई का ग़लत इस्तेमाल उन्हें फसाने और उनकी पार्टी को बदनाम करने कि कोशिश समाजवादी पार्टी और कांग्रेस कर रही है !दरअसल,आय से अधिक सम्पति के मामले में मायावती पर मामला चल रहा है !उनका कहना था कि केन्द्र से समर्थन वापसी के बाद सरकार कि यह बदले कि कारवाई है !बहरहाल,इस बात में सच्चाई जो हो लेकिन ओबरॉय होटल में उनकी प्रेस वार्ता के बारे में आप क्या कहेंगे !
कोंफ्रेंस में तमाम इलेक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट के पत्रकार बंधु मौजूद थे !यह कार्य कर्म टेलीविजन पर लाइव चल रहा था!सभी पत्र कारों के लिए बहन जी ने पंचसितारा होटल में दोपहर के लजीज व्यंजन का प्रवंध कर रखा था !एक बात जो मैंने महसूस किया कि बहन जी कि पार्टी बहुजन समाज कि बात करती है ,लेकिन उनका तामझाम एक सामंती चरित्र वाली पार्टियों जैसा ही था !
क्या बहन जी देल्ही में अपने पार्टी मुख्यालय या उत्तर प्रदेश भवन में संवाददाता सम्मलेन नही कर सकती थी क्या -------
क्या ओबरॉय जैसे महंगे होटल में ही वे अपने को सहज महसूस करती हैं .....................
यह सलाह सिर्फ़ कुमारी मायावती जी को ही नही है ऐसे सभी दलों को है जो पंचसितारा संस्कृति को बधाबा देते हैं
बुधवार, 9 जुलाई 2008
हमारी राजनीती .............
अब हमारी राजनीती की परिभाषा
बदल गई है
हमारी राजनीती जिसमे टिके रहने के लिए
आदर्शो,सिधान्तो की नही -
जरुरत है दो चार लाशों की
क्योंकि,हमारी राजनीती हो गई है नेताओं की लाश निति
अब फिक्र जनतंत्र की नही -
अब भय जनता -जनार्दन की नही-
धन ,बल और अपराध से अर्धमुर्चित हो गई
हमारी राजनीती .........
सोमवार, 7 जुलाई 2008
एक मौका तो दीजए जनाब .पिछले हफ्ते मै और मेरे पत्रकार मित्र पंकज दिल्ली में भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् की तरफ़ से आयोजित सूफी संगीत के कार्यकर्म में गए हुए थे .इस कार्यकर्म में पाकिस्तान में मशहूर सूफी कव्वाल साबरी ब्रदर्स ने अपने सूफियाने अंदाज़ में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया .दरअसल मैं और पंकज गजलो और सूफी संगीत के खास कद्रदानों में से हैं .हम दोनों का मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान के दरमयान जो करवाहट है ,उसे दूर करने में मौसिकी खासी भूमिका अदा कर सकती है!हमारा मानना है की हिंदुस्तान और पाकिस्तान को और करीब आना चाहये , क्योंकि दोनों मुल्को के बीच दोस्ती दोनों मुल्को की आवाम चाहती है,किसी शायर ने ठीक ही फ़रमाया "जंग तो ख़ुद एक मसला है,यह किसी मसले का हल कैसे हो सकता है"..................
एक जैसी तहजीब ,एक जैसी रवायत बाबजूद इसके इतनी गहरी दूरियां ।
लेकिन,हम जैसी सोच हमारे हिंदुस्तान मैं बहुत सारे नौजवानों की होगी ,पाकिस्तान में भी नई पीढी की सोच कुछ इसी तरह की होगी .उपरवाले ने दोनों देसों को बेशुमार सलाहयत दी है ,क्या हम उनका इस्तेमाल आवाम की बेहतरी के लिए नही कर सकते!क्या सियासत हमारी जज्बातों पर इतना हावी हो चुका है की हमारे सियासतदान दोनों मुल्कों की जनता को करीब नही आने देना चाहते!
लेकिन,हम करीब आयेगे जरूर आयेंगे ..........................................