गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

जंग तो खुद एक मसला है......?

मुंबई में हुए फ़िदायीन हमलों के बाद एक बार फिर भारत और पाकिस्तान के रिश्ते तल्ख़ होते जा रहे हैं। ऐसे में सबसे ज़्यादा ग़मज़दा सरहद के दोनों तरफ़ वो लोग हैं,जो हर क़ीमत पर दोनों मुल्कों के दरम्यान अमन और विश्वास चाहते हैं। २६ नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमलों में कई बेगुनाहों की जानें गईं- काफ़ी संख्या में लोग घायल भी हुए। मंबई में आतंकियों से मुकाब़ला करते हुए हमारे कई बहादुर अफ़सरों ने अपनी शहादत भी दी। जिसपर पूरे देश को गर्व है। अगर पिछले कुछ सालों का ज़ायजा लें तो देश में लगातार हुए आतंकी घटनाओं में कई हज़ार लोगों को अपनी जान गँवानी पड़ी। आख़िर क्या वजह है कि सरकार इन घटनाओं को रोक पाने में असमर्थ है........ इस वक्त समूचा देश इसी सवाल से जूझ रहा है। मौज़ूदा समय में आतंकवाद समूची दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या है। दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत और पाकिस्तान इस दहशतगर्दी के ज्यादा शिकार हैं। अक्सर जो होता रहा है- अगर धमाके पाकिस्तान के लाहौर या कराची में होते हैं तो पाकिस्तानी हुक्म़रानों का शक कहीं न कहीं भारत की तरफ़ होता है। कुछ ऐसा ही हिन्दुस्तान में होने वाले धमाकों के बाद होता है- शक की सुई पाकिस्तान की तरफ़ जाती है। बहुत हद तक इसमें सच्चाई भी है। लेकिन, अफ़सोस इस बात का है कि दोनों मुल्कों के सियासी लोगों ने आरोप-प्रत्यारोप को अपना राजनीतिक हथियार बना लिया है। आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान की कई सियासी पार्टियों की दुकान भारत विरोध पर ही टिकी है। कुछ हद तक भारत में भी कई राजनीतिक दल के लिए पाकिस्तान विरोध एक बढ़िया प्रोडक्ट साब़ित हो रहा है। मुंबई की घटना के बाद दोनों देशों के शीर्ष नेता एक बार फ़िर एक दूसरे पर इल्ज़ाम लगा रहे हैं। ऐसे में कुछ वर्षों से जारी शांति प्रकिया को नुकसान पहुँचने की संभावना प्रबल हो गई है। इन हालातों में कुछ आगे तक सोचें तो दोनों ओर से बढ़ता तनाव कहीं जंग में तब्दील हो जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
लेकिन, क्या जंग भारत और पाकिस्तान को दहशतगर्दी से निज़ात दिला पाएगा.....शायद ही इसका जबाब कोई हाँ में दे पाएगा। क्योंकि जंग तो खुद एक मसला है, ये किसी मसले का हल कैसे हो सकता है। दोनों मुल्कों के दरम्यान इससे पहले भी कई जंग हो चुके हैं....नतीज़ा क्या निकला सिवाए खून और तबाही के। हमें ये कत्तई नहीं भूलना चाहिए कि जंग की पृष्ठभूमि हूकूमत बंद कमरे में तैयार होती हैं-लेकिन तबाही का मंजर जंग के मैदान में दिखाई देता है। जंग खत्म तो जरूर होती है, लेकिन उसके घाव मुद्दत तक कायम रहते हैं। हक़ीकत यही है कि सियासतें नफ़रत बोती हैं और जंग काटती हैं।
कम से कम भारत और पाकिस्तान को तो जंग के बारे में सोचना भी नहीं चाहिए...क्योंकि जंग ने इन दोनों मुल्कों को काफ़ी जख्म दिए हैं, जो अब तक नहीं भरे हैं। हम अमन के तलब़गार हैं, हम नफ़रत की सभी दीवार गिराना चाहते है......। क्योंकि तारीख और सरहदों ने हमें भले ही दो हिस्सों में बाँट दिया हो लेकिन, हमारी रवायत और ख्वाब एक जैसे हैं।

2 टिप्‍पणियां:

सौम्या झा ने कहा…

abhishek wat u hv written..m totally agree with u....lekin ek baat tumhen bhi pata hogi ki behron ko dhamake ki jaroorat hoti hai......aur hamari chuppi ko kuch log yani mutthi bhar log kamjori samajh lete hain
main manti hun ki jhagra ksi bhi problm ka solution
lekin beech beech mein eski jarrorat pade to dikha bhi dene mein koi burai nahi....well wat u hv written....i aappreciate

कुमार नरोत्तम ने कहा…

I m not very inmpressed with your views, because there is nothing new in this story. You have expressed and highlighted those thing which is known to everyone.But the matter of point is,"what are the solution of this tragedy"? If you are very eager to highlight these issues, then write about some solutions, do not write a traditional essay. Anyway, as an essay, its good.