सोमवार, 1 दिसंबर 2008

इंसानी लाशों पर राजनीति कबतक ?

26 नवंबर का दिन भारत समेत समूची दुनिया में एक ख़ौफ़नाक यादें छोड़कर चला गया। मायानगरी मुंबई को चंद दहशतगर्दों ने अपनी ज़द में लेकर तकरीब़न दो सौ ब़ेगुनाहों की जान ले ली। साठ घंटे तक चली सैन्य कार्रवाई के बाद आख़िरकार हमारे जांबाज़ सैनिकों ने पंचसितारा होटल ताज, ओबरॉय और नरीमन हाउस से दहशतगर्दों के कब्ज़े से बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाया। लेकिन, इसकी बड़ी क़ीमत हमें चुकानी पड़ी- एटीएस चीफ़ करकरे से लेकर मेज़र उन्नीकृष्णन समेत कई बहादुर सिपाही को अपनी शहादत देनी पड़ी। दैनिक अख़बार और बाकी मीडिया इस आतंकी हमले को देश में हुए अबतक का सबसे बड़ा हमला मानते हैं। इसबात से इन्कार भी नहीं किया जा सकता,क्योंकि ये पहली दफ़ा है- कि बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक भी मारे गए। मुंबई के आतंकी हमलों की खबर को दुनिया के तमाम अख़बारों और मीडिया जगत ने प्रमुखता दी। अमेरिका सहित कई देशों ने भी ग़म के इस घड़ी में भारत के साथ सहानुभूति दिखाई और आतंकवाद को समूल नष्ट करने की अपनी वचनवद्धता दोहराई। लेकिन, इस बीच ब्रिटेन की एक संस्था ने एक सर्वे के तहत भारत को दुनिया का २० सबसे खतरनाक देश बताया। इस सर्वे पर किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए,क्योंकि पिछले कुछ सालों में देखें तो देशभर में जिस क़दर आतंकी हमले हो रहे हैं- उससे साफ़ जाहिर है कि यह देश भी धीरे-धीरे इराक और अफ़गानिस्तान होता जा रहा है। मुंबई में आतंकी हमलों के खिलाफ़ देश की सियासी पार्टियाँ और लीडरान ने एकजुटता दिखाई, लेकिन दुर्भाग्य से हमारा देश अमेरिका नही है- जिस तरह ९/११ के बाद अमेरिकी नेताओं ने आतंकवाद के खात्मे को लेकर एकजुटता दिखाई वह काब़िलेतारीफ़ ही नही बल्कि सही मायनों में राजनीतिक धर्म भी है। लेकिन मुंबई की घटना के चंद रोज़ के बाद ही देश की सियासी पार्टियाँ आरोप-प्रत्यारोप के अपने घिनौने खेल में एक बार फिर से मशरूफ़ हो गईं हैं।

आतंकी हमलों की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने कल अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया। उनके इस्तीफ़े को रेलमंत्री लालू प्रसाद ने देर में लिया गया फ़ैसला बताया-जबकि बीजेपी ने इसे नौटंकी बताया। इस्तीफ़े का दौर यहीं खत्म नहीं हुआ.... आज सवेरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख और राज्य के गृहमंत्री आर आर पाटिल ने भी अपना त्यागपत्र राज्यपाल को सौंप दिया। बावजूद इसके सियासत कम नहीं हो रही। कल ही केरल के मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन को ताज आपरेशन में शहीद हुए मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के पिता ने अपने घर में घुसने से मना करते हुए चेतावनी दी कि अगर कोई राजनेता उनके घर घड़ियाली आंसू बहाने आया तो वे खुदकशी कर लेंगे। देश में नेताओं पर से उठते भरोसे के लिए शायद ये संकेत काफी.....................है। हर हमलों के बाद नेताओं की तरफ़ से संवेदना, मुआवज़े और घटना की उच्चस्तरीय जाँच कराने की रस्मअदायगी से देश की जनता का भरोसा उठ चुका है। तभी तो घर कुत्तों को सम्मान तो है, लेकिन देश के नेताओं का नहीं। हमारे देश की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ रही है..............शायद मूल्यविहीनता की तरफ़............................

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