आज लगभग सभी अख़बारों ने
महत्वपूर्ण राष्ट्रीय ख़ब़रों के साथ जियो टीवी में दिए पाकिस्तान के पूर्व
प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के इंटरव्यू को प्रमुखता के साथ प्रकाशित किया है। इस
इंटरव्यू में शरीफ़ ने पूरी बेबाक़ी के साथ कहा कि मुंबई हमले में गिरफ़्तार आतंकी
अज़मल आमिर कसाब़ पाकिस्तान का ही वाशिंदा है। नवाज़ ने इसे लेकर पाकिस्तान के
मौज़ूदा राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी पर भी सवाल उठाए कि वो हक़ीकत से मुँह मोड़
रहे हैं। उन्होंने ये भी कहा कि- इस वक्त देश ही हालत सही नहीं है और कहीं न कहीं
इसके लिए वो ज़रदारी-गिलानी हूकूमत को इसका जिम्मेदार ठहराया। बहरहाल,मियां नवाज़ ने तो अपनी दिल की बात पूरी
साफ़गोई से कह दी- और मंच बना पाकिस्तान का ज़ियो टेलीविज़न । नवाज़ के इस
इंटरव्यू को कल पूरे दिन भारतीय टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों ने खूब दिखाया और नवाज़
शरीफ़ के तारीफ़ में जम़कर क़सीदे पढ़े। कुछ ऐसा ही मिज़ाज अख़बारों का भी रहा।
लेकिन, उनकी ये साफ़गोई
पाकिस्तानी हुक्म़रानों को हज़म नहीं हो रहा। गिलानी सरकार में सूचना प्रसारण
मंत्री शेरी रहमान ने नवाज़ के इस ब़यान की जम़कर निंदा की है। उनके मुताब़िक ऐसे
ब़यान पाकिस्तान की एकता के लिए सही नहीं है। इसे लेकर लाहौर हाईकोर्ट ने ज़ियो
टीवी और उसके पत्रकार हाम़िद म़ीर के खिलाफ़ देशद्रोह का म़ुकदमा क़ायम़ करने वाली
याचिका मंज़ूर कर ली है।
फ़िलहाल ये कह पाना मुश्किल होगा कि कोर्ट इसपर क्या फ़ैसला सुनाती है। पिछले 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकी हमलों के बाद भारत सहित दुनिया के ज्यादातर देशों ने पाकिस्तान को कटघरे में खड़ा किया। लेकिन पाकिस्तान अपनी हठधर्मिता से कत्तई बाज़ नहीं आया। उसकी तरफ़ से लगातार ये ब़यान दिया गया कि इन हमलों से उनका कोई सरोकार नहीं। ये बात किसी से नहीं छुपी है कि आज की तारीख़ में पाकिस्तान दहशतगर्दों का आरामगाह बना हुआ है। बावजूद इनपर नकेल कसने के वो रक्षात्मक मुद्रा अपना रहा है। अफ़सोस इस बात की है कि इन दहशतगर्दों ने पाकिस्तान को भी नहीं छोड़ा- भस्मासुर की तरह वहां की जम्हूरियत को निगलने के लिए वह आतुर है। अभी ज्यादा दिन नहीं हुए बेनज़ीर भुट्टो की शहादत को.......कौन थे हत्यारे......शायद ये बात ज़नाब जरदारी भी जानते होंगे। ज़रदारी साहब सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्रसंघ में शहीद भुट्टो की तस्व़ीर दिखाने से उनकी रूह को शांति नहीं मिलेगी। अगर कुछ करना ही है तो आरोपों से बचने का नुस्ख़ा छोड़ दहशतगर्दों की गर्दन पकड़िए.......क्योंकि इंतहापसंदी पाकिस्तान के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बन चुका है। मैं जियो टीवी के बेब़ाक पत्रकारिता का क़ायल हो गया हूँ- इसलिए नहीं कि उसने पाकिस्तानी हूक़ूम़त की असलिअत ज़गजाहिर की और भारत के दावों को मज़बूत किया। दरअसल, मैं तो कायल वहाँ के ज्यूडिश्यरी, वकील, मानवाधिकार कार्यकर्ता और खासकर उनमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने वाली महिलाओं का भी हूँ, जो समय-समय पर हूकूमत के ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ बुलंद की हैं। मुंबई में आतंकियों के खिलाफ़ चल रहे ऑपरेशन को हमारे देश के सभी समाचार चैनलों ने भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच की तरह सीधा प्रसारण दिखाया, वो भी अलग-अलग एंगिलों से। मीडिया के इस भूमिका को लेकर भी सवाल उठाए जा रहें है कि- उनकी ये बहादुरी किस हद तक ज़ायज थी।
मीडिया जगत के प्रबुद्ध
लोग इसपर रोज़ लिख रहे हैं। मुंबई की घटना ने आर्थिक मंदी के दौर में मीडिया को
क़माई का अच्छा अवसर प्रदान किया। निचले पायदान पर पहुँच चुके कई चैनलों ने इस
त्रासदी का सफल कवरेज़ कर अपने रैंकिंग में सुधार किया। अपनी पहचान को मोहताज़ कुछ
नये चैनलों ने भी अपनी पहचान बनाने में कामयाब़ी हासिल की। लेकिन, उस भीड़ में पत्रकारिता की आत्मा एकबार
फ़िर लहूलुहान हुई...जिसकी फ़िक्र शायद मौज़ूदा बाजारवाद में किसी को नहीं है।
पाकिस्तान और भारत भले ही दो मुल्क है, लेकिन उनकी समस्याएँ भी कमोबेश एक जैसी हैं। इन सबसे लड़ने में दोनों
देशों की मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता अहम क़िरदार निभा सकते हैं। भारत के
मुकाबले पाकिस्तान में न्यूज़ चैनलों और अखबारों की संख्या कम है। साथ ही जितनी
आजादी भारत में पत्रकार और पत्रकारिता को है उतना पाकिस्तान में नहीं है। बावजूद
इसके जियो टीवी ने जो पहल की है- वह अनहद में गूँज जैसी ही है। हमारे देश की
मीडिया को भी कुछ ऐसा ही करने की ज़रूरत है.
1 टिप्पणी:
भंग के नशे में डूबे इन मीडिया कर्मियों से इतनी आश न लगाओ नही अपना ही सर लहुलुहान कर बैठोगे .....इनकी बुधि केबल पर देशका भला नही होने वाला है....बेहतर तो यही है की जहाँ भी मौका मिले सच को कहने से मत चूको ....इतनी ही बेबाकी से लिखते रहो....
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