गुरुवार, 8 जनवरी 2009

मुंबई हमला और दोनों मुल्कों की मीडिया

26 नवंबर को हुए मुंबई हमला गुज़रे साल की दर्दनाक यादों में शुमार हो गया....। यह घटना लंबे अरसे तक हर भारतीय को सालती रहेगी। मुंबई हमलों की हकीक़त ज्यों-ज्यों सामने आयी- पाकिस्तान की असलियत भी खुलकर सामने आने लगी। इस दहशतगर्दी वाकयात से दोनों देशों के बीच जारी शांति प्रक्रिया की ऱफ़्तार को काफ़ी धक्का लगा है। नतीज़तन भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में कशीदगी ज़रूर पैदा हो गई है। दोनों हुकूमतों ने एक दूसरे पर इल्ज़ामों की झड़ी लगा दी है।

एक तरफ़ भारत पाकिस्तान को सबूत दर सबूत दे रहा है-लेकिन पाकिस्तान इसे मुक्ममल क़रार नहीं दे रहा। इधर भारत विश्व बिरादरी को पाकिस्तान के नखरे सुनाता है तो उधर बड़ी साफ़गोई से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिशें करता है। इन सब के बावज़ूद आख़िरकार पाकिस्तान ने यह क़बूल कर ही लिया कि – मुंबई हमलों में शामिल अज़मल कसाब पाकिस्तानी नागरिक ही है। इस बात की पुष्टि की- शेरी रहमान ने जो वहां की सूचना और प्रसारण मंत्री हैं। जो एक जमाने में खुद भी पत्रकार रह चुकी हैं।

ये तो रही सियासत और हुकूमतों की भाषा- जिसे आवाज़ दी दोनों देशों की अख़बारी और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने। 26/11 से पहले सरहद के दोनों ओर मीडिया का मिज़ाज़ सामान्य था। लिहाज़ा एक दूसरों की ख़बरे सही रूप से दोनों देशों तक पहुँचती थी- लेकिन मुंबई हमलों के बाद ये स्थितियां बदलने लगी और दोनों आग उगलने की क़वायद में जुट गए। हालांकि उनमें भी कुछ अपवाद रहे – जिन्होंने अपने ज़ज्बातों पर क़ाबू रखते हुए अपना संतुलन बरक़रार रखा। उसे गुस्सा और नेताओं के सोच की भाषा नहीं बनने दिया।
कराची से प्रकाशित होने वाला डॉन पाकिस्तान में अंग्रेजी सर्वाधिक लोकप्रिय अख़बार है- जिसने मुंबई हमलों के बारे सही और संतुलित ख़बरें प्रकाशित की। उसके संपादकीय में भी एक गंभीरता दिखी। डॉन ग्रुप के ही ज़ियो टीवी ने जो पहल की वह काब़िले ताऱीफ़ है। ज़ियो टीवी पर पहली बार खुद नवाज़ शरीफ़ ने अपने इंटरव्यू में कहा कि – अज़मल कसाब पाकिस्तानी है और उसका ताल्लुकात फ़रीदकोट जिले से है। हालांकि इस इंटरव्यू के बाद पाकिस्तान में बवाल मच गया- नतीज़तन जियो टीवी के पत्रकार हामिद म़ीर के खिलाफ़ लाहौर हाईकार्ट में देशद्रोह का मामला भी दर्ज़ किया गया। जबकि डॉन ग्रुप के ही उर्दू अख़बार जंग नज़रिया कुछ और ही रहा। भारत के खिलाफ़ खबरें छापने में उसने कोई सुस्ती नहीं दिखाई। पाकिस्तान के दूसरे मीडिया ग्रुप नवा-ए-वक्त की बात करें तो उसके अंग्रेज़ी अख़बार द नेशन को छोड़कर बाकी निदा-ए-मिल्लत और जहांनुमा तो युद्ध की भाषा लिखते रहे और भारत के हर दावों पर नुक्ताचीनी की है। वहीं द न्यूज़ और डेली टाइम्स का रवैया भी सही नहीं रहा। जबकि फ्राइडे टाइम्स मे मुंबई की घटना पर हो रही ब़यानबाजी को लेकर दोनों देशों को जमकर लताड़ा।

बात अगर भारत की मीडिया की करें तो- मुंबई हमलों से जुड़े रिपोर्टिंग में प्रिंट ओर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अलग-अलग ख़ेमों में साफ़ नज़र आए। न्यूज़ चैनलों ने जिस नाटकीय ढंग से कवरेज़ की उसकी जमकर आलोचना हो रही है। पाकिस्तान के मुकाबले भारत में अखबारों और न्यूज़ चैनलों की संख्या बहुत ज्यादा है, लेकिन जिस तरह का संयम और गंभीरता का परिचय पाकिस्तानी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया खासकर जियो टीवी और दुनिया टीवी ने दिखाया- उससे कुछ सीख भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को लेना चाहिए।

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